सकट चौथ व्रत कथा की ये है 5 मुख्य कहानियां जरूर करें पाठ | sakat Chauth Vrat Katha In hindi

sakat Chauth Vrat Katha In hindi: हिंदू धर्म में माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला सकट चौथ व्रत (sakat Chauth Vrat), माताओं के मन में संतान के सुख-समृद्धि की कामना जगाने और भगवान गणेश की कृपा पाने का पवित्र अनुष्ठान है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं, पूजा-पाठ करती हैं और भगवान गणेश को प्रसन्न करती हैं।

sakat Chauth: सकट चौथ व्रत कथा 1

एक दिन, माता पार्वती स्नान करने के लिए गईं। उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को बाहर पहरा देने का आदेश दिया। गणेश जी अपनी मां की बात मानकर बाहर पहरा देने लगे।

उसी समय, भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए। गणेश जी ने उन्हें दरवाजे पर ही रुकने के लिए कहा। भगवान शिव को यह बात नागवार गुजरी। उन्होंने गणेश जी पर त्रिशूल से प्रहार किया। गणेश जी की गर्दन कटकर अलग हो गई।

शोर सुनकर माता पार्वती बाहर आईं। उन्होंने देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। वे बहुत ही दुखी हुईं। उन्होंने भगवान शिव से गणेश जी को जीवित करने का आग्रह किया।
भगवान शिव ने गणेश जी को जीवित करने के लिए एक हाथी का सिर लगाया। गणेश जी को दूसरा जीवन मिल गया। तभी से गणेश जी की सूंड हाथी की तरह हो गई।

माता पार्वती ने गणेश जी की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत करने का संकल्प लिया। उन्होंने इस व्रत को सभी महिलाओं को भी करने के लिए कहा।

तब से माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से बच्चों की सलामती की कामना की जाती है।

सकट चौथ व्रत कथा

सकट चौथ व्रत कथा 2 

एक समय की बात है, एक नगर में एक कुम्हार रहता था। वह बहुत ही मेहनती और ईमानदार था। वह अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए बहुत मेहनत करता था।

एक दिन, कुम्हार ने बर्तन बनाकर आंवां लगाया। वह बहुत ही उत्साहित था कि उसके बर्तन अच्छी तरह से पकेंगे और उसे अच्छी कीमत मिलेगी। लेकिन जब उसने आंवां खोला तो वह देखकर बहुत ही निराश हुआ। आंवां बिल्कुल भी नहीं पकाया था।

कुम्हार बहुत ही परेशान हो गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्यों हुआ। उसने अपने दोस्तों और परिवार से सलाह ली, लेकिन किसी को भी इसका कोई हल नहीं पता था।

कुछ दिनों बाद, कुम्हार ने राजा से मिलने का फैसला किया। उसने राजा को बताया कि उसका आंवां नहीं पक रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर सलाह ली। राजपंडित ने कहा कि आंवां नहीं पकने का कारण यह है कि कोई बुरी आत्मा आंवां को नुकसान पहुंचा रही है।

राजा ने कहा कि इस समस्या का समाधान करना होगा। उसने घोषणा की कि अब से हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि दी जाएगी। इस घोषणा से नगर में बहुत ही भय व्याप्त हो गया।

कुछ दिनों बाद, बुढ़िया के बेटे की बारी आई। बुढ़िया का बेटा उसका एकमात्र सहारा था। वह सोचने लगी कि वह क्या करे। उसने सोचा कि वह अपने बेटे को किसी तरह बचा लेगी।

सकट चौथ के दिन, बुढ़िया ने अपने बेटे को सकट माता की सुपारी और दूब का बीड़ा दिया। उसने अपने बेटे से कहा कि वह आंवां में बैठ जाए और सकट माता की प्रार्थना करे। बुढ़िया ने विश्वास किया कि सकट माता उसकी मदद करेंगी।

सकट चौथ के दिन, आंवां में बालक बैठ गया और बुढ़िया सकट माता की पूजा करने लगी। उसने सकट माता से प्रार्थना की कि वह उसके बेटे की रक्षा करें।

सकट माता ने बुढ़िया की प्रार्थना सुनी। उसने अपनी कृपा से आंवां को एक ही रात में पकाया दिया। अगले दिन सुबह, जब कुम्हार ने आंवां देखा तो वह बहुत ही खुश हुआ। आंवां पूरी तरह से पक चुका था और बुढ़िया का बेटा भी जीवित था।

सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जीवित हो गए। यह देखकर नगरवासियों ने सकट माता की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

सकट चौथ व्रत कथा 3

एक समय की बात है, एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी। वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थी। उसके एक बेटा और बहू थे। बुढ़िया सदैव गणेश जी की पूजा किया करती थी। एक दिन गणेश जी प्रकट होकर उस बुढ़िया से बोले- ‘बुढ़िया मां! तू जो चाहे सो मांग ले।’

बुढ़िया बहुत ही खुश हुई। उसने सोचा कि अब उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी। लेकिन वह बहुत ही गरीब और दृष्टिहीन थी। उसे कुछ भी मांगना नहीं आता था। वह बोली- ‘मुझसे तो मांगना नहीं आता। कैसे और क्या मांगू?”

तब गणेशजी बोले – ‘अपने बहू-बेटे से पूछकर मांग ले।’

बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा- ‘गणेशजी कहते हैं ‘तू कुछ मांग ले’ बता मैं क्या मांगू?’

पुत्र ने कहा- ‘मां! तू धन मांग ले।’

बहू से पूछा तो बहू ने कहा- ‘नाती मांग ले।’

तब बुढ़िया ने सोचा कि ये तो अपने-अपने मतलब की बात कह रहे हैं। अत: उस बुढ़िया ने पड़ोसिनों से पूछा, तो उन्होंने कहा- ‘बुढ़िया! तू तो थोड़े दिन जीएगी, क्यों तू धन मांगे और क्यों नाती मांगे। तू तो अपनी आंखों की रोशनी मांग ले, जिससे तेरी जिंदगी आराम से कट जाए।’

इस पर बुढ़िया बोली- ‘यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे नौ करोड़ की माया दें, निरोगी काया दें, अमर सुहाग दें, आंखों की रोशनी दें, नाती दें, पोता दें, और सब परिवार को सुख दें और अंत में मोक्ष दें।’

यह सुनकर तब गणेशजी बोले- ‘बुढ़िया मां! तुमने तो हमें ठग लिया। फिर भी जो तूने मांगा है वचन के अनुसार सब तुझे मिलेगा।’ और यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए।

उधर बुढ़िया मां ने जो कुछ मांगा वह सबकुछ मिल गया। वह नौ करोड़ की मालकिन बन गई। उसकी काया निरोगी हो गई। उसका सुहाग अमर हो गया। उसकी आंखों की रोशनी आ गई। उसे नाती-पोता हुए। उसके परिवार को सुख-समृद्धि प्राप्त हुई। और अंत में उसे मोक्ष भी मिल गया।

सकट चौथ व्रत कथा

सकट चौथ व्रत कथा 4

एक समय की बात है, एक साहूकार और उसकी पत्नी थी। वह धर्म-कर्म में बिल्कुल विश्वास नहीं करते थे। उनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन, साहूकार की पत्नी ने अपने पड़ोसन से सकट चौथ व्रत के बारे में सुना। उसने पड़ोसन से कहा कि वह भी इस व्रत को करना चाहती है।

पड़ोसन ने उसे व्रत के बारे में बताया और कहा कि अगर वह सच्चे मन से व्रत करे, तो उसे संतान की प्राप्ति होगी। साहूकार की पत्नी ने व्रत करने का निश्चय किया।

सकट चौथ के दिन, साहूकार की पत्नी ने व्रत रखा। उसने सुबह जल्दी उठकर स्नान किया और भगवान गणेश की पूजा की। उसने व्रत का संकल्प लिया और दिन भर निराहार रही। शाम को, उसने गणेश जी की पूजा की और व्रत का पारण किया।

व्रत के बाद, साहूकार की पत्नी को एक सपना आया। सपने में भगवान गणेश ने उसे कहा कि तुम्हारे घर में जल्द ही एक पुत्र का जन्म होगा।

कुछ महीनों बाद, साहूकार की पत्नी को एक पुत्र हुआ। साहूकार और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए। उन्होंने अपने पुत्र का नाम “सकट” रखा।

सकट बड़ा होकर एक अच्छे इंसान बना। वह हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान करता था और धर्म-कर्म में विश्वास करता था।

सकट चौथ व्रत से साहूकार की पत्नी को संतान की प्राप्ति हुई। यह व्रत सभी सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को सुख-समृद्धि और संतान की प्राप्ति होती है।

सकट चौथ व्रत कथा 5

एक समय की बात है, एक नगर में एक सुहागिन महिला रहती थी। वह बहुत ही धर्म-परायण थी और वह सभी व्रत-उपवास करती थी। एक दिन, उसके पति को एक दुर्घटना में चोट लग गई। वह बहुत ही बीमार पड़ गए। डॉक्टरों ने कहा कि उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं है।

वह महिला बहुत ही दुखी थी। वह अपने पति के लिए सकट चौथ व्रत करने का निश्चय किया। उसने सोचा कि अगर वह सच्चे मन से व्रत करेगी, तो भगवान गणेश उसके पति को बचा लेंगे।

सकट चौथ के दिन, उसने व्रत रखा। उसने सुबह जल्दी उठकर स्नान किया और भगवान गणेश की पूजा की। उसने व्रत का संकल्प लिया और दिन भर निराहार रही। शाम को, उसने गणेश जी की पूजा की और व्रत का पारण किया।

व्रत के बाद, उसने एक सपना देखा। सपने में भगवान गणेश ने उसे कहा कि तुम्हारे पति ठीक हो जाएंगे।

कुछ दिनों बाद, उसके पति की हालत में सुधार हुआ। वह पूरी तरह से ठीक हो गए। वह और उसका परिवार बहुत खुश हुआ।

सकट चौथ व्रत से उस महिला के पति की जान बच गई। यह व्रत सभी लोगों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस व्रत को करने से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

ये पांच सकट चौथ व्रत (sakat Chauth Vrat) कथाएँ हैं। इन कथाओं से पता चलता है कि सकट चौथ व्रत बहुत ही शुभ व्रत है। इस व्रत को करने से लोगों को कई लाभ होते हैं।

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