थारू जनजाति की अनूठी शादी की रस्म: पैर से थाली और सिर माथे खाना

थारू जनजाति की अनूठी शादी की रस्म और रीति रिवाजों में एक रिवाज ऐसा होता है कि, नई दुल्‍हन अपनी पति को हाथों से नहीं बल्कि, पैर से खाने की देती है फिर पति कुछ ऐसा करता है आइए जानते है इस रीति से जुड़ी हर जानकारी।

भारत के विभिन्न राज्‍यों और इलाकों में विवाह में अजीबोगरीब रीति-रिवाज देखने को मिलते हैं। एक ऐसी अद्वितीय परंपरा उत्तराखंड, उत्‍तर प्रदेश और नेपाल के एक जनजाति, थारू की शादियों में दिखाई जाती है। इस समुदाय की शादियों में एक विशेष रीति है जो इसे अन्‍य समुदायों से अलग बनाती है।

थारू जनजाति की अनूठी शादी की रस्म

मातृसत्तात्मक समाज की झलक: थारू जनजाति एक मातृसत्‍तात्‍मक समुदाय है, जहां महिलाओं को पुरुषों के सामने ऊंचा दर्जा मिलता है। नई दुल्‍हन जब पहली बार रसोई में खाना बनाती है, तो पति को हाथ के बजाय पैर से खिसकाकर थाली देना एक विशेष रस्‍म है। इसके बाद दुल्‍हा थाली को सिर माथे लगाकर खाना खाता है। माना जाता है कि थारू जनजाति राजपूत मूल की थी, लेकिन कुछ कारणों से वे थार रेगिस्तान को पार करके नेपाल चले गए। आजकल थारू समुदाय के लोग भारत के उत्‍तराखंड, उत्‍तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी देश नेपाल में रहते हैं।

थारू जनजाति की अनूठी शादी की रस्म

थारू जनजाति का इतिहास:

थारू जनजाति का इतिहास: माना जाता है कि थारू जनजाति राजपूत मूल की थी, लेकिन कुछ कारणों से वे थार रेगिस्तान को पार करके नेपाल चले गए। आजकल थारू समुदाय (थारू जनजाति) के लोग भारत के उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी देश नेपाल में रहते हैं।

थारू समुदाय के निवास स्थान:

थारू समुदाय के लोग बिहार के चंपारन, उत्तराखंड के नैनीताल और ऊधम सिंह नगर, और उत्‍तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में सबसे अधिक पाए जाते हैं। इनका वास्तविक समृद्धि इलाकों में होता है, और उनकी शादियों में विशेष रीतियों का पालन होता है। उनके विशेष पहनावा, पूजा पद्धतियां और संस्कृति इसे अन्य समुदायों से अलग बनाती हैं।

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विवाह संस्कार में अनूठी परंपराएं:

थारू समुदाय की शादियों में तिलक के बाद लड़का एक विशेष परंपरागत पहनावा में लड़की के घर जाकर दही, अक्षत, और सिंदूर से साखू के पेड़ की पूजा करता है। फिर साखू की लकड़ी और डाल लेकर लौआ भूनता है, जिसे शादी के दिन लावा भूना जाता है।

सगाई की रस्म:

 सगाई की रस्म को ‘अपना पराया’ भी कहा जाता है, और इसे दिखनौरी भी कहा जाता है। शादी के बाद दुल्हा थाली में खाना खाता है, जिसे दुल्हन पैर से खिसकाकर प्रदान करती है। इस रीति और परंपरा के रूप में थारू समुदाय की अनूठी विशेषताएं अपनी विविधता को और भी रंगीन बनाती हैं। महिलाओं को पुरुषों के सामने ऊंचा स्थान देने वाली इस समुदाय की रूपरेखा और शादी की रीतियों में अनूठापन है। उनकी धार्मिक आदतें और परंपराएं इस समुदाय को अद्वितीय बनाती हैं, जिसे उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में समाजिक और सांस्कृतिक पहचान मिलती है।

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तराई की धेरोहर

थारू जनजाति सदियों से नेपाल और भारत के तराई क्षेत्रों में निवास करती है। उनकी अपनी थारू भाषाएँ हैं, पर वे नेपाली और क्षेत्रीय भाषाएँ भी बोलते हैं। कृषि इनका मुख्य पेशा है, पर मछली पालन और हस्तशिल्प भी महत्वपूर्ण हैं। माघी उनका सबसे बड़ा त्योहार है, जो नृत्य, संगीत और परंपरागत खेलों से भरा होता है। थारू संस्कृति समृद्ध है, जिसमें लोक कथाएँ, नृत्य और वेशभूषाएँ शामिल हैं। हालाँकि, उन्होंने सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना किया है, जैसे कमैया प्रथा का उन्मूलन। आज, वे अपनी संस्कृति को संरक्षित करने और विकास के अवसरों की मांग कर रहे हैं।

निष्कर्ष: थारू जनजाति की अनूठी शादी की रस्म और परंपराएं उनकी समृद्ध संस्कृति और विविधता का प्रतीक हैं। महिलाओं को पुरुषों के सामने ऊंचा स्थान देने वाली इस समुदाय की रीति-रिवाज उन्हें अन्य समुदायों से अलग बनाते हैं।

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